जिस विश्वविद्यालय की ज़मीन पर बनवाना था हॉस्टल उसे सौंप दिया बिल्डरों को, छात्र और शिक्षक हड़ताल पर बैठे

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में स्थित रक्षा मंत्रालय की जमीन को एक निजी बिल्डर को दिए जाने और उस पर 39 मंजिला इमारत का निर्माण शुरू होने पर दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक हड़ताल पर बैठ गए हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र पिछले 10 दिनों से हड़ताल पर बैठ हुए हैं. छात्रों को किरोड़ीमल कॉलेज के शिक्षक डॉ. रसाल सिंह और राजनीतिक शास्त्र के शिक्षक विपिन तिवारी व अन्य का भी इस 39 मंजिला बिल्डिंग के विरोध में साथ मिल रहा है.

छात्रों और शिक्षकों ने इस 39 मंजिला बिल्डिंग के बनने से सभी छात्रों खासकर महिला छात्रावासों को लेकर सुरक्षा, दृष्टिहीन छात्रों के आने-जाने और जल संसाधनों पर दबाव की चिंता जताई है.

डीयू के छात्र अनुपम कहते हैं, ‘इस 39 मंजिला बिल्डिंग के खिलाफ लड़ाई किसी एक गुट की नहीं है. सभी लोग साथ हैं. लेफ्ट-राइट और अन्य सभी छात्र संगठनों के साथ बड़ी संख्या में छात्र इसका विरोध कर रहे हैं.’

एक अन्य छात्र प्रकाश रंजन का कहना है कि रक्षा मंत्रालय ने अपनी तीन एकड़ जमीन डीएमआरसी को मेट्रो निर्माण के लिए दी थी लेकिन डीएमआरसी ने एक एकड़ पर मेट्रो बनाकर दो एकड़ जमीन निजी बिल्डर को दे दी है. अब यहां 39 मंजिला इमारत बन रही है.

बता दें कि विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन से सटे खाली 2.05 एकड़ भूमि पर एक निजी 39 मंजिला आवासीय इमारत का निर्माण शुरू हो चुका है, जबकि वह जमीन मूल रूप से रक्षा मंत्रालय की है. इस जमीन को सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहित किया गया था और 2001 में मेट्रो के निर्माण के लिए डीएमआरसी को दे दिया गया था.

आरोप है कि मेट्रो निर्माण के बाद बची जमीन को डीएमआरसी ने 2008 में रक्षा मंत्रालय से मंजूरी लिए बिना यंग बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड नामक एक निजी कंपनी को पट्टे पर दे दिया. अब यह कंपनी यहां बिना समुचित अनुमति लिए इस आवासीय इमारत का निर्माण कर रही है.

विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी निर्माण या विकास गतिविधि को शुरू करने से पहले विश्वविद्यालय से अनुमति लेना जरूरी होता है, लेकिन कंपनी ने ऐसा न करके कानून का उल्लंघन किया है.

रक्षा मंत्रालय और दिल्ली विश्वविद्यालय दोनों ने मानदंडों के उल्लंघन के संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है और मामला विचाराधीन है. इसके बावजूद निजी बिल्डर ने वहां निर्माण कार्य शुरू कर दिया है.

आरोप है कि नॉर्थ एमसीडी द्वारा योजना को खारिज किए जाने के बाद कंपनी ने महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और नॉर्थ एमसीडी से मंजूरी हासिल कर ली. वहीं, रक्षा मंत्रालय ने भी इस मामले में एनजीटी में याचिका दाखिल की है, जो लंबित है.

बिल्डिंग के विरोध में धरने पर बैठे छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि एक लंबी लड़ाई के बाद छात्राओं की कर्फ्यू टाइमिंग में ढील सहित कई अन्य मांगें मानी गई थीं लेकिन अगर परिसर में कोई निजी बिल्डिंग बनती है तो सुरक्षा का बहाना बनाकर एक बार फिर से छात्राओं की कर्फ्यू टाइमिंग सख्त कर दी जाएगी.

साथ ही, यहां हलचल बढ़ने के कारण परिसर में अपराध के मामलों में बढ़ोतरी हो जाएगी. इसके अलावा नॉर्थ कैंपस के कई कॉलेजों में पहले से ही मौजूद पानी की समस्या भी बढ़ने की आशंका है.

प्रकाश रंजन कहते हैं, ‘मोदीजी ने बोला था कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, लेकिन इसके बनने से उनकी निजता का क्या होगा. यहां पर विश्वविद्यालय के सभी अधिकारियों के भी आवास हैं और इससे समस्या उत्पन्न होगी. 39 मंजिल में बिल्डिंग में अगर लोग रहने आ गए, तो इससे ट्रैफिक बढ़ जाएगी और कैंपस सुरक्षित नहीं रह जाएगा.’

प्रदर्शनकारियों की बड़ी मांग यह है कि इस सरकारी जमीन पर विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए छात्रावास बनाया जाए क्योंकि अभी देश भर से आने वाले मात्र पांच फीसदी छात्रों को ही छात्रावास की सुविधा मिल पाती है.

डीयू की छात्रा अंकिता कहती हैं, ‘हमारे पास पर्याप्त संख्या में हॉस्टल नहीं है और हमें हॉस्टल की जरूरत है इसलिए किसी कंपनी को यह जमीन देने के बजाय यहां हॉस्टल बनना चाहिए. यहां देश भर से छात्र पढ़ने आते हैं इसलिए यदि ऐसी कोई सरकारी जमीन है तो उनके लिए हॉस्टल उपलब्ध होना चाहिए. छात्राओं को बाहर जाकर 10-10 हजार के रूम लेकर रहने पड़ते हैं.’

एक अन्य छात्र अविनाश कहते हैं, ‘हमें बहुत ही छोटे-छोटे कमरे किराए पर लेकर बाहर रहना पड़ता है इसलिए हम चाहते हैं कि यदि ऐसी कोई सरकारी जमीन उपलब्ध है तो वह किसी निजी बिल्डर को न देकर वहां पर हॉस्टल बनाए जाने चाहिए.’

वहीं, डीयू के ही छात्र अनुराग निगम इसे निजीकरण की तरफ उठा कदम मानते हैं. वे कहते हैं, ‘विश्वविद्यालय का यह कदम न सिर्फ छात्रों के भविष्य के प्रतिकूल है बल्कि निजीकरण को बढ़ावा देने वाला है. डेढ़ लाख से भी अधिक छात्र-छात्राओं वाले विश्वविद्यालय में 5,000 से भी कम छात्रों के लिए हॉस्टल की सुविधा उपलब्ध है. कुलपति छात्रों के लिए हॉस्टल, लाइब्रेरी, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनवाने के बजाय बिल्डरों के हाथ की कठपुतली बन गए हैं.’

अपनी मांगों को लेकर छात्र-छात्राओं ने बुधवार 13 नवंबर को नॉर्थ कैंपस से उपराज्यपाल अनिल बैजल के आवास तक साइकिल मार्च किया और उनसे हस्तक्षेप की मांग की है. उपराज्यपाल ने एक विशेष सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित कर मामले की जांच का आदेश दे दिया है.

एक अन्य छात्र हिमांशु कहते हैं, ‘साइकिल यात्रा निकालकर हम एक संगठित विरोध कर रहे हैं ताकि इस निजी बिल्डिंग की जगह एक हॉस्टल बनाया जाए. दिल्ली विश्वविद्यालय में बहुत कम संख्या में बच्चों को हॉस्टल मिल पाता है. 300 छात्रों में से मात्र 10 छात्रों के लिए हॉस्टल उपलब्ध हो पाते हैं. निजी बिल्डिंग बनने से निजता का खतरा तो पैदा होगा ही साथ ही ट्रैफिक की भी समस्या होगी. हॉस्टल बनने से अधिक से अधिक बच्चे कैंपस के अंदर रह कर पढ़ाई कर सकेंगे.

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