इंदौर के सामने जल प्रबंधन की चुनौतियां

दावा- 83% आबादी को नर्मदा जल, हकीकत- 30% से ज्यादा लोग बोरिंग पर निर्भर; 15% पानी बर्बाद

इंदौर – आने वाले समय में जलप्रबंधन शहर के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। इसकी वजह यह है कि जल आपूर्ति के लिए हम पूरी तरह मां नर्मदा पर निर्भर है। नदी में भी कम होते प्रवाह ने चिंता बढ़ा दी है। नर्मदा योजना के तीनों चरणों से 436 एमएलडी पानी जलूद से लाया जाता है।
इसमें करीब 15% यानी 50 एमएलडी पानी लीकेज में बर्बाद हो रहा है। सिर्फ शहर की आबादी करीब 30 लाख है। वर्ष 2050-55 तक यह 70 लाख तक पहुंच सकती है। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को पानी पहुंचाना बड़ी चुनौती रहेगी। नर्मदा के चौथे चरण के तहत 400 एमएलडी पानी लाने की योजना है। 500 किमी क्षेत्रफल में पानी वितरण लाइनों का नेटवर्क बिछाया जाएगा पर यह इतना आसान होगा?
निगम भूजल स्तर में सुधार बता रहा, केंद्र की रिपोर्ट में हम क्रिटिकल जोन में-नगर निगम के रिकॉर्ड के मुताबिक शहर में भूजल का स्तर पहले से सुधरा है। इसके लिए दस जगह पीजोमीटर भी लगाए है लेकिन सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट में इंदौर के कुछ इलाकों को भी क्रिटिकल जोन में डाला है, जहां सामान्य सीमा से बहुत ज्यादा भूजल दोहन किया जा रहा है। भूजल स्तर में लगातार गिरावट को देखते हुए जिला प्रशासन ने 30 जून तक बोरिंग पर रोक लगा दी है। सरकारी रिकॉर्ड में 6 हजार बोरिंग हैं, जबकि 60 से 70 हजार निजी बोरिंग है। एक बोरिंग से एक हजार लीटर पानी का दोहन किया जाता है।
वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट के एडवाइजर सुधींद्र मोहन शर्मा कहते हैं कि इंदौर के लिए जल प्रबंधन चुनौती है। जलूद से नर्मदा नदी से हमें पानी मिल रहा है। जल स्तर पहले से बेहतर हुआ है, लेकिन सेंट्रल भूजल बोर्ड ने हमें संकटग्रस्त जोन में डाला है।
इसकी वजह यह है कि हमारी आबादी बढ़ रही है और हम पूरी तरह एक ही स्त्रोत पर निर्भर हैं। हमारे पास अन्य स्रोत नहीं हैं। हमने समय के साथ उन्हें विकसित नहीं किया है। नर्मदा का प्रवाह कम होता जा रहा है। इसीलिए आने वाले समय में खतरनाक स्थिति में पहुंच सकते हैं। यह बात भी सही है कि सिर्फ रेन वाटर हार्वेस्टिंग ही नहीं, बल्कि जल प्रदाय व्यवस्था में भी पहले से सुधार हुआ है। अभी घरों में आसानी से जलप्रदाय हाे रहा है, लेकिन बढ़ती जनसंख्या के लिए यह आपूर्ति को हम पूरा नहीं कर पाएंगे।

घरों की संख्या 6 लाख, पौने तीन लाख घरों में नल कनेक्शन

नगर निगम ने दो साल पहले अभियान चलाकर एक लाख रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाए थे। फिर भी करीब 130 किराए से, 87 सरकारी टैंकर चल रहे है। जलसंकट गहराते ही 300 टैंकर की जरूरत होगी। सबसे ज्यादा वार्ड 79, 85, 84 सहित शहरी सीमा से सटे वार्डों में टैंकर्स की जरूरत ज्यादा पड़ती है। नल कनेक्शन की बात करें तो शहर में करीब छह लाख घर है। एक तालाब को बचाया जाए तो उसका फायदा पूरे क्षेत्र को होता है। इसका उदाहरण पीपल्याहाना तालाब है। इससे स्कीम 94 व 140 के बोरिंग गर्मी में पर्याप्त पानी व जुलाई से सितंबर तक ओवर फ्लो होते हैं।

पानी सहेजने के प्रयास

शहर में पानी की चुनौती से निपटने के लिए अब तालाबों का मास्टर प्लान बनाया जा रहा है। तालाबों को फिर से जिंदा किया जाएगा, ताकि ना सिर्फ भूजल स्तर में बढ़ोतरी हो, बल्कि पानी के नए स्रोत तैयार किए जा सकें। निगमायुक्त शिवम वर्मा ने पानी की व्यवस्था के लिए प्लानिंग बनाने के निर्देश दिए हैं। निगम के सलाहकार के रूप में काम कर रहे सुरेश एमजी ने बताया कि पिछले साल रालामंडल के तालाब का एक किमी के हिस्से का कैचमेंट खोला गया था। इसके कारण बिलावली व लिम्बोदी पांच दिन में भरने लगे थे। जबकि एक महीने से ज्यादा का समय लगता था। तालाबों का गहरीकरण सहित चैनल खोलने के सुझाव आने के बाद सभी जोनल अधिकारियों से प्लान मंगवाया गया है। इन 27 तालाबों के कैचमेंट पर काम किया जाएगा। यहां 200 रिचार्ज शॉफ्ट बन रहे हैं। कान्ह नदी और तालाबों की चैनल बंद थी। अब इसे खोला जा रहा है। सात दिन में काम शुरू करना है। बीते दस सालों में शहर की आबादी तेजी से बढ़ी है।