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‘पालो ना’ अभियान के आंकड़ों में खुलासा मप्र में एक साल में 40 नवजातों को फेंका,

बेटी बचाओ के नारे हर जगह गूंजते हैं। बेटियों के लिए केंद्र से लेकर प्रदेश में कई योजनाएं भी चल रही हैं, इसके बावजूद लावारिस स्थिति में फेंकी गई नवजात लड़की की संख्या इस बात की ओर इशारा करती है कि समाज लड़कियां होना अभी भी अभिशाप है।
इस बात का खुलासा एक निजी संस्था द्वारा चलाए जा रहे पालो ना अभियान के माध्यम से हुआ। यह अभियान मप्र सहित छह राज्यों में चलाया जा रहा है। कोरोना काल में मप्र में 40 नवजात शिशु को झाड़ियों में छोड़ा गया। इसमें से 10 नवजात को बचाया नहीं जा सकता। भोपाल में इस दौरान चार बच्चे झाड़ियों में फेंके गए।
जिसमें से दो की मौत हो गई। दो शिशु को जेपी अस्पताल के बाद शिशु गृह भेज दिया गया। हालांकि फेंके गए नवजात में लड़कों के मुकाबले लड़कियां का प्रतिशत अधिक है। इस बात की पुष्टि महिला एवं बाल विकास विभाग के शिशु गृह में भेजे गए बच्चों की संख्या करती है। प्रदेश के शिशु गृह में झाड़ियों, पोटली में लपेटकर 58.5 प्रतिशत लड़कियां फेंकी गई। वहीं नवजात लड़काें का प्रतिशत 48.4 प्रतिशत रहा है।
अभियान की फाउंडर मेंबर मोनिका आर्य बताया कि अभियान छह राज्यों में चल रहा है। कोरोना काल में वर्ष 2020 में मार्च से दिसंबर तक सबसे ज्यादा नवजात उप्र में फेंके गए। यहां पर एक साल में 68 नवजात कचरे में मिले हैं। वहीं चौथे नंबर पर मप्र है। यहां पर 40 नवजात शिशु फेंके गए। इसमें से लावारिस छोड़ी गई बच्चियों की संख्या, लड़कों से ज्यादा तक रही।

इनमें सात लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या 22 है। वहीं केवल जीवित बच्चों की बात करें तो मप्र के 31 शिशु गृहों में परिजनों द्वारा त्यागे गए जन्म से 6 साल तक 222 बच्चे हैं। इसमें से 132 लड़कियां और 94 लड़के हैं। वहीं भोपाल के दो शिशु गृह में 12 लड़कियां और 10 लड़के हैं।