अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में आ सकती है क्रांति, मंगल के रोवर को ऊर्जा देगी नई बैट्री

अमेरिका में भारतीय मूल के विज्ञानियों की अगुआई वाली शोध टीम ने एक ऐसी बैट्री विकसित की है जो बेहद हल्की है और तेजी से चार्ज होती है। इसका इस्तेमाल स्पेससूट के साथ मंगल के रोवर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है। विज्ञानियों का कहना है कि यह बैट्री अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।

इस शोध टीम में शैलेंद्र चिलुवाल, नवराज सपकोटा, अप्पाराव एम राव और रामकृष्ण पोदिला भी शामिल थे। ये सभी दक्षिण केरोलिना स्थित क्लेम्सन विश्वविद्यालय के क्लेम्सन नेनोमैटेरियल्स इंस्टीट्यूट (सीएनआइ) के शोधकर्ता हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा वित्तपोषित यह अध्ययन अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल अप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुआ है।

क्लेम्सन विवि के कॉलेज ऑफ साइंसेज में डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोनॉमी में सहायक प्रोफेसर रामकृष्ण पोदिला ने कहा, ‘नई बैटियां अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में क्रांति ला सकती हैं। इनका इस्तेमाल जल्द ही अमेरिकी उपग्रहों में भी किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि ज्यादातर सेटेलाइट सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। लेकिन जब इन पर पृथ्वी की छाया पड़ती है तो इन्हें ऊर्जा नहीं मिल पाती, जिससे इनका काम प्रभावित होता है। इस समस्या को दूर करने के लिए ही हमने हल्की बैटियां तैयार की हैं। पोदिला ने कहा, ‘अंतरिक्ष अनुसंधान का काम आसान करने के लिए हमें बैट्री को जितना संभव हो उतना हल्का बनाना होगा, क्योंकि जितना ज्यादा उपग्रह का वजन होता है, उतनी ही मिशन की लागत भी होती है।’

ग्रेफाइड की जगह सिलिकॉन का किया प्रयोग : पोदिला ने कहा कि शोधकर्ताओं की सफलताओं को समझने के लिए लीथियम-आयन बैट्री में ग्रेफाइट एनोड की कल्पना कार्ड के डेक के रूप में की जा सकती है, जिसमें प्रत्येक कार्ड ग्रेफाइट की एक परत का बना रहता है जिसका उपयोग ऊर्जा को स्टोर करने के लिए किया जाता है। लेकिन समस्या यह है कि ग्रेफाइट ज्यादा मात्र में ऊर्जा को संग्रहीत नहीं कर सकता। इसलिए शोधकर्ताओं ने सिलिकॉन का प्रयोग किया, जो हल्के सेल्स में भी ज्यादा ऊर्जा एकत्र करने में सक्षम होता है। नई बैटियों में कार्बन नैनोट्यूब की परतों का उपयोग किया गया है, जिसे ‘बुकीपेपर’ कहा जाता है।

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