झारखंड में बीजेपी को देना होगी अग्निपरीक्षा, बागियों की चुनौती तो कहीं अपनों से मुकाबला

हरियाणा में हारते-हारते बची बीजेपी की सबसे बड़ी परीक्षा झारखंड में होने वाली है, जिस गठबंधन के दम पर लोकसभा चुनाव में एनडीए ने एकतरफा जीत हासिल की थी वो बुरी तरह से बिखर चुकी है. सबसे पहले एलजेपी ने अपना पल्ला झाड़ा उसके बाद आजसू ने रास्ते अलग कर लिए. इस बीच विद्रोही उम्मीदवार बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द बनने वाले हैं. सबसे बड़ी घेराबंदी खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास की चल रही है. कांग्रेस ने उनके खिलाफ अपने फायर ब्रांड प्रवक्ता गौरव बल्लभ को उतारा है तो एक जमाने के तपे तपाए नेता सरयू राय को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो वे विद्रोही बनकर बीजेपी की राह मे खड़े हो गए हैं, उन्होंने मुख्यमंत्री रघुवर दास को सीधी चुनौती दे दी है.

सरयू राय का साथ देने के लिए समूचा विपक्ष एक जुट होकर मोर्चाबंदी में जुटा है. विचार इस बात पर भी चल रहा है कि उन्हें समूचे विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार बना दिया जाए. सवाल ये है कि अभी दो विधानसभा चुनाव में आशातीत सफलता हासिल ना कर पाने वाली बीजेपी के लिए झारखंड में रणनीति क्या है?

अपनों से अपनों का मुकाबला

कल तक रघुवर दास सरकार का हिस्सा रहे सरयू राय, आज मुख्यमंत्री के सामने ताल ठोककर खड़े हो गए हैं. मंत्रिपरिषद और विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद सरयू राय ने लाव लश्कर के साथ जमशेदपुर पूर्व विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है. राज्य के कई सीटों पर आजसू के उम्मीदवारों से बीजेपी का सीधा मुकाबला होने वाला है. आजसू के प्रमुख सुदेश महतो ज्यादातर सीटों पर मुकाबले का दम भर रहे हैं. पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति सांकेतिक तौर पर ही सही नुकसान तो बीजेपी का ही करने वाली है.

स्थानीय मुद्दों पर जोर

झारखंड में बदली हुई परिस्थितियों में बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली है. ज्यादातर जगहों पर उन्होंने उम्मीदवारों का चयन स्थानीय मुद्दों और जातिगत समीकरण के हिसाब से किया है. इसके साथ ही उनके नेताओं को उम्मीद है कि आक्रामक प्रचार के साथ वो राजनीतिक परिस्थिति को अपने पक्ष में करने में कामयाब रहेंगे.

मोदी नाम केवलम

विपक्षी रणनीति के बीच बीजेपी को अपने ट्रंप कार्ड यानी पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर पूरा भरोसा है. हर चुनाव की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी की धुआंधार रैली की तैयारी चल रही है. इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह की भी बड़ी संख्या में चुनावी रैली होनी है. अमित शाह ने तो सितंबर में ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ कहे जाने वाले संथाल परगना के जामताड़ा में बीजेपी के जोहार जनआशीर्वाद यात्रा को शुरू करने के साथ चुनाव प्रचार का बिगुल फूंक दिया है. उन्होंने रघुवर दास के नेतृत्व पर पूरा भरोसा जताया था.

बीजेपी की स्टार नीति

पीएम और अमित शाह के अलावा बजेपी अपने स्टार प्रचारकों की पूरी फौज झारखंड में तैनात कर रही है. पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट भी जारी कर दी है जिसमें जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, बीएल संतोष, रघुवर दास, योगी आदित्यनाथ, अर्जुन मुंडा, प्रह्लाद जोशी, रविशंकर प्रसाद, धर्मेंद्र प्रधान, मुख्तार अब्बास नकवी, स्मृति इरानी के अलावा स्टार से नेता बने मनोज तिवारी, सनी देओल, रवि किशन के नाम भी शामिल हैं.

झारखंड के चुनावी मुद्दे

सत्ता में रहने के बावजूद विपक्ष के लिए मुद्दों के जरिए मुसीबत खड़ी करने की कला में अमित शाह की टीम माहिर है. इसी रणनीति के चलते अभी से सोरेन परिवार को लेकर बीजेपी ने हमला शुरु कर दिए हैं. झारखंड के राजनीतिक इतिहास को खंगाल कर मुद्दे बाहर निकाले जा रहे हैं. भ्रष्टाचार की पुरानी बातें सामने लाई जा रही हैं. साथ ही स्थिर सरकार को लेकर बीजेपी बड़ा जोर देने वाली है. गौर करने की बात है कि बिहार से अलग होने के बाद झारखंड ने पिछले 19 सालों में 10 मुख्यमंत्री देखे हैं. बीजेपी राज्य में पांच साल की सरकार पूरी करने के बाद अगली स्थिर सरकार का दावा कर रही है.

इसके अलावा ये मुद्दे भी विपक्ष के लिए बड़ा हथियार साबित हो सकते हैं.

सीएनटी-एसपीटी एक्ट का मुद्दा

मौजूदा बीजेपी सरकार ने झारखंड के बहुत पुराने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में बदलाव की कोशिश की जिसका जबरदस्त विरोध भी हुआ था. भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन और उद्योगपतियों के लिए लैंड बैंक बनाने जैसी बातें भी आदिवासियों के गुस्से की वजह बन सकती है.

भूखमरी से मौतें

ये ऐसी खबर है जिससे पूरा देश शर्मशार होता रहा है. बीते कुछ सालों में भूख से मौत की कुछ खबरों ने रघुवर दास सरकार के लिए संकट खड़ा किया. विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाने की फिराक में है. उनका कहना है कि अगर सरकार जनता को भरपेट खाना नहीं दे सकती है, तो फिर यह कैसा शासन है. इन सबके अलावा रघुवर सरकार की नागरिकता पॉलिसी, बढ़ती बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था और कुपोषण जैसे मुद्दे भी इस चुनाव में काफी अहम रहने वाले हैं.

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