झाबुआ उपचुनाव: BJP के लिए सिरदर्द, आखिर किस मुद्दे पर लड़े चुनाव

झाबुआ उपचुनाव में जहाँ एक ओर कांग्रेस पार्टी अपने मज़बूत प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया और कमलनाथ सरकार द्वारा पिछले नौ महीने में आदिवासी हितों के लिए किए गए कार्यों के आधार पर चुनाव मैदान में उतर रही है वहीं भाजपा अभी तक ना तो प्रत्याशी का चयन कर पाई है और न ही उसके पास में ऐसा कोई स्पष्ट मुद्दा है जिसके आधार पर वो इस चुनाव में मज़बूती या टक्कर दिखाने की कोशिश भी करे।

कमलनाथ सरकार ने पिछले नौ महीने में झाबुआ को कई सौगातें दी है, यहाँ तक कि विश्व आदिवासी दिवस को एक महत्वपूर्ण दिन बनाते हुए इस दिन पूरे राज्य में अवकाश की घोषणा कर आदिवासियों के दिलों में अपने लिये विशेष जगह भी बना ली है।

वर्ष 2006 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों को वनों में रहने और वनोपज से अपनी आजीविका चलाने का अधिकार दिया था लेकिन शिवराज सरकार ने यह अधिकार छीनते हुये आदिवासियों की आजीविका का साधन ही समाप्त कर दिया था।

मध्यप्रदेश के 6 लाख 63 हज़ार 424 आदिवासी परिवारों ने शिवराज सरकार को आवेदन देकर वनों के सामुदायिक उपयोग का अधिकार एवं वनोपज से आजीविका चलाने के लिए अनुमति की माँग की थी लेकिन बीजेपी सरकार ने इन आवेदनों में से 3 लाख 63 हज़ार 424 आवेदनों को अवैधानिक तरीक़े से निरस्त कर आदिवासियों के जीवन को संकट में डालने का कार्य किया था।

कुल मिलाकर झाबुआ उपचुनाव में कांग्रेस के पास बताने और जताने के लिए बहुत कुछ है, जबकि BJP के आदिवासी विरोधी निर्णय यदि झाबुआ की जनता को पता चल गये तो BJP के लिए बहुत बड़ी मुश्किल होना तय है।

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