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क्रिसिल ने घटाया भारत का GDP वृद्धि दर अनुमान : इकोनॉमी स्लोडाउन

क्रिसिल रेटिंग ने वित्त वर्ष 2020 के लिए भारत के जीडीपी वृद्धि दर अनुमान को 6.3 प्रतिशत से घटाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया. क्रिसिल ने इसके लिए निजी उपभोग में कमजोर वृद्धि, कर संग्रह में कमजोर वृद्धि और औद्योगिक उत्पादन के अलावा अन्य कारक को जिम्मेदार ठहराया है.
क्रिसिल ने सोमवार को कहा कि बड़ी चिंता दूसरी तिमाही में वृद्धि दर घटकर 6.1 प्रतिशत हो जाना है, जो नई जीडीपी श्रृंखला में सबसे कम है. क्रिसिल ने कहा, ‘हम इस वित्त वर्ष में नॉमिनल जीडीपी के औसतन 8.9 प्रतिशत की उम्मीद करते हैं, जबकि बजट में 12 प्रतिशत का अनुमान किया गया था.’
ब्याज दरों में होगी कटौती
न्यूज एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, क्रिसिल ने वृद्धि दर अनुमान में यह संशोधन ऐसे समय में किया है, जब आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक मंगलवार से शुरू होने वाली है. उम्मीद की जा रही है कि बैठक में वृद्धि दर को मदद पहुंचाने के लिए प्रमुख दरों में कटौती की जाएगी.
6 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है जीडीपी
गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में जीडीपी का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंच गया है. यह करीब 6 साल में किसी एक तिमाही की सबसे बड़ी गिरावट है. इससे पहले मार्च 2013 तिमाही में देश की जीडीपी दर इस स्तर पर थी.
अहम बात ये है कि देश की जीडीपी लगातार 6 तिमाही से गिर रही है. बीते वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में ग्रोथ रेट 8 फीसदी पर थी तो दूसरी तिमाही में यह लुढ़क कर 7 फीसदी पर आ गई. इसी तरह बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ की दर 6.6 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.8 फीसदी पर थी. इसके अलावा वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ की दर गिरकर 5 फीसदी पर आ गई.
जीडीपी ग्रोथ में कमी की वजह से ही भारत ने दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का तमगा गंवा दिया है और अब यह टैग चीन के पास है. इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारत की जीडीपी में 5.01 फीसदी की ही बढ़त हुई है, जबकि चीन में 6.2 फीसदी की बढ़त हुई है.
क्या होता है GDP
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है.