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चंद्रयान ने चांद पर खोज निकाला पानी

नेचर एस्ट्रोनॉमी के अध्ययन के मुताबिक पहले से कहीं ज्यादा मात्रा में पानी मिलने की संभावना, भारतीय चंद्रयान ने चांद पर पानी की मौजूदगी के बारे में 11 साल पहले ही बता दिया था
दिल्ली। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने चांद की सतह पर पानी की खोज का दावा किया है। उनका कहना है कि उन्हें चंद्रमा पर पर्याप्त पानी मिला है। यह पृथ्वी से दिखने वाले साउथ पोल के गड्ढों में अणुओं के रूप में नजर आया है। इस खोज से दुनिया के अंतरिक्ष मिशन को भविष्य में नई दिशा मिलेगी। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने 2009 में ही चंद्रमा पर पानी के संकेत दिए थे। इस खोज की जानकारी नासा ने अपने ट्विटर हैंडल के जरिये भी दी है।
नेचर एस्ट्रोनॉमी ने सोमवार को प्रकाशित अपने दो आलेखों के जरिए बताया है कि पुराने अनुमानों से कहीं ज्यादा पानी चंद्रमा में हो सकता है। चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में स्थाई रूप से बर्फ है जिससे पानी की संभावनाएं और ज्यादा मात्रा में है। पिछले शोध पर सतह पर पानी के संकेत मिले थे, पर वह शोध पानी और हाइड्रॉक्साइड के अंतर को बताने में नाकाम रहा था। जहां पानी (H2O) हाइड्रोजन के दो अणु और ऑक्सीजन के एक अणु से मिलकर बनता है वही हाइड्रॉक्साइड (OH) ऑक्सीजन के एक अणु और हाइड्रोजन के एक अणु के साथ मिलकर बनता है। नई स्टडी में यह साफ हो पाया है कि चंद्रमा पर आणविक जल मौजूद है। यह जल उन क्षेत्रों पर भी मौजूद हैं जहां सूरज की सीधी रोशनी चंद्रमा पर पड़ती है।
स्ट्रेटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी ने चंद्रमा की सतह पर जितने पानी की कल्पना की है वह सहारा मरुस्थल में मौजूद पानी की मात्रा से 100 गुना कम है। वास्तव में चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है। इसके बावजूद पानी कैसे बना यह वैज्ञानिकों के लिए बड़ा सवाल है।
भारत के इसरो द्वारा भेजे गए चंद्रयान मिशन ने पहले ही चंद्रमा पर पानी के संकेत दिए थे। 22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 चंद्रमा पर भेजा गया था। इसे ऑर्बिट के जरिए नवंबर 2008 में चंद्रमा के साउथ पोल पर गिराया गया था। इस पर मौजूद मून इंपैक्ट प्रोब ने 2009 में संकेत भेजे थे कि चंद्रमा में पानी चट्टानों और धूल कणों में फंसा हुआ है। इसका यह मतलब निकाला जा रहा था कि चंद्रमा की सतह पर बहुत कम मात्रा में पानी मौजूद है।