अयोध्या केस से ही एक साथ हुए थे बीजेपी-शिवसेना, राममंदिर निर्माण की राह खुलते ही टूटा गठबंधन

नई दिल्‍ली. महाराष्‍ट्र में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद भी कुछ ऐसे सियासी समीकरण बने कि राष्‍ट्रपति शासन लागू करने की नौबत आ गई. दरअसल, दोनों दल अपना मुख्‍यमंत्री बनाने को लेकर अड़े रहे और गठबंधन टूट गया. इसके बाद शिवसेना की एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिशें भी सिरे नहीं चढ़ पाईं. आखिरकार राज्‍य में राष्‍ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. इस उठापटक के बीच दिलचस्‍प ये है कि राममंदिर आंदोलन से शुरू हुआ बीजेपी-शिवसेना गठबंधन अयोध्‍या में जन्‍मभूमि पर मंदिर निर्माण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही टूट गया. हालांकि, इससे पहले भी बीजेपी-शिवसेना गठबंधन कई मौकों पर टूटता और जुड़ता रहा है.

बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में प्रमोद महाजन की थी अहम भूमिका
महाराष्‍ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच 1989 में गठबंधन हुआ था. तब बीजेपी ने राममंदिर आंदोलन शुरू ही किया था. बीजेपी की ओर से प्रमोद महाजन ने इस गठबंधन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी. शिवसेना के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष बाल ठाकरे ने खुद को हिंदुत्‍व के सबसे बड़े पैरोकार के तौर पर पेश किया. बाल ठाकरे चाहते थे कि राममंदिर आंदोलन के जरिये उनकी पार्टी की पहुंच मुंबई के बाहर भी बढ़े. इससे पहले तक उनकी पार्टी का एजेंडा मराठी मानुष और मराठी भाषी लोगों को पहचान दिलाना ही था. हालांकि, हिंदुत्‍व की राजनीति का रुख करने का मतलब था कि शिवसेना को मराठी एजेंडा छोड़ना पड़ता. मराठी एजेंडा छोड़ने से शिवसेना के दबदबे वाले कई विधानसभा क्षेत्रों में हलचल मच गई.

‘अगर कारसेवा करने वाले शिवसैनिक हैं, तो मुझे अभिमान है’
राममंदिर आंदोलन के लिए साथ आईं शिवसेना-बीजेपी ने 1989 का लोकसभा और 1990 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा. इस दौरान दोनों को सीटों के मामले में फायदा मिला. इसके बाद 1991 में दोनों पार्टियां बृहन्‍मुंबई म्‍युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में आमने-सामने आ गईं. शिवसेना सीट बंटवारे पर सहमत नहीं हुई और बीजेपी से गठबंधन टूट गया. इसके बाद छगन भुजबल के शिवसेना छोड़ने पर भी बाल ठाकरे नाराज थे. इसके बाद आडवाणी ने 1992 में रथयात्रा और विश्‍व हिंदू परिषद ने कारसेवा की. जब बाबरी मस्जिद गिरी तो कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था. तब बाल ठाकरे ने कहा था, ‘अगर कारसेवा करने वाले शिवसैनिक हैं, तो मुझे उसका अभिमान है.’

साथ रहकर भी बीजेपी की आलोचना करती रही शिवसेना
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 1995 में कांग्रेस ने सबसे ज्‍यादा सीटों पर कब्‍जा किया. शिवसेना दूसरे और बीजेपी तीसरे नंबर पर रही. एक बार फिर बीजेपी-शिवसेना साथ आए और सरकार बनाई. शिवसेना महाराष्ट्र के बाहर केंद्र में भी बीजेपी के साथ रही. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में शिवसेना से दो केंद्रीय और एक राज्यमंत्री रहे. बावजूद इसके शिवसेना श्रम सुधार, राममंदिर निर्माण और अनुच्‍छेद-370 पर बीजेपी सरकार की आलोचना करती रही. महाराष्ट्र में 1999 के बाद से शिवसेना और बीजेपी विपक्ष में रहे, लेकिन कभी साथ नहीं छोड़ा. केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में 2004 से 2014 तक बीजेपी-शिवसेना ने मिलकर विपक्ष की भूमिका निभाई.

अलग चुनाव लड़कर भी बीजेपी सरकार में होती रही शामिल
2012 में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का निधन हो गया. इसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में शिवसेना की बीजेपी से कई मामलों में बात नहीं बन पाई. दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया. वहीं, नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में 2014 का आम चुनाव भी दोनों पार्टियों ने अलग ही लड़ा. चुनाव के बाद शिवसेना बीजेपी सरकार में शामिल हो गई और राज्य सरकार के अलावा केंद्र की मोदी सरकार में भी हिस्सेदारी मिल गई. हालांकि, इस दौरान किसान, नोटबंदी और जीएसटी (GST) जैसे मुद्दों पर शिवसेना केंद्र सरकार की आलोचना करती रही.

उद्धव ठाकरे ने कहा, बीजेपी से कभी नहीं करेंगे गठबंधन
शिवसेना के मौजूदा प्रमुख उद्धव ठाकरे ने 2018 में बड़ा बयान देते हुए कभी बीजेपी से गठबंधन नहीं करने तक की बात कह दी. लेकिन, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले फरवरी, 2019 में दोनों दलों के बीच बराबर सीट बंटवारे और बराबर सत्ता के वादे के साथ गठबंधन हो गया. दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव 2019 में मिलकर लड़ा. केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फिर सरकार बनी और शिवसेना से सिर्फ अरविंद सावंत को मंत्री बनाया गया. बीजेपी को लोकसभा में बंपर बहुमत मिलने के चलते शिवसेना चाहकर भी इस हिस्सेदारी को चुनौती नहीं दे सकी. जब विधानसभा चुनाव आया तो टिकट बंटवारे पर शिवसेना ने बीजेपी को अपनी ताकत का अहसास कराया.

शिवसेना ने महाराष्‍ट्र चुनाव के नतीजों के बाद रखीं शर्तें
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी के बीच सीट वितरण को लेकर फिर खींचतान दिखाई दी. कई दिन तक गठबंधन पर ऊहापोह की स्थिति के बीच नामांकन शुरू होने से ठीक पहले दोनों दलों के बीच समझौता हो गया. हालांकि, शिवसेना को फिर भी बराबर सीटें नहीं मिल सकीं, लेकिन चुनाव नतीजों ने उसे ताकत दिखाने का मौका दे दिया. महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों में बीजेपी 105, शिवसेना 56, एनसीपी 54 और कांग्रेस 44 सीटें जीत पाईं. बीजेपी बहुमत से दूर रह गई और शिवसेना ने अपनी शर्तें रखनी शुरू कर दीं. शिवसेना ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद पर अड़ गई, लेकिन बीजेपी इस पर सहमत नहीं हुई. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्‍या में विवादित जमीन पर राममंदिर निर्माण का फैसला सुना दिया. इधर, आखिर में मुख्‍यमंत्री पद को लेकर दोनों पार्टियों की राहें फिर अलग हो गईं.

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