भाजपा के 6 असंतुष्ट दिग्गज नेता विधानसभा चुनाव में बिगाड़ सकते हैं खेल

जयंत मलैया, गौरीशंकर शेजवार, दीपक जोशी, अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई और गौरी शंकर बिसेन के तेवर बगावती

भोपाल – राजनीति में नए-पुराने सभी नेता मायने रखते हैं। नवंबर-दिसंबर में एमपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रदेश भाजपा के 6 पुराने नेता फिर से आवाज बुलंद करने लगे हैं। ये बदली हुई परिस्थितियां अपनों से ही मुसीबत के संकेत दे रही हैं। जो चेहरे पार्टी में कभी कद्दावर माने जाते थे, कैबिनेट का हिस्सा थे, अब वही जीत के रास्ते पर कांटे बिछा सकते हैं। इन परिस्थितियों की जड़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपने समर्थकों सहित बीजेपी जॉइन करना है। 2020 में सिंधिया और उनके समर्थकों के बीजेपी में आने के बाद जिन सीटों पर उपचुनाव हुए, वहां पार्टी के पुराने चेहरों को मौका न मिलना पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
2020 से अब तक की गतिविधियों की पड़ताल करने पर पता चला कि बीजेपी के मिशन-2023 की राह में पार्टी के ही अपने-अपने इलाकों के 6 दिग्गज और पूर्व मंत्री समस्या बनकर खड़े हो सकते हैं। कद्दावर मंत्री रहे जयंत मलैया की सीट हो या डॉ. गौरीशंकर शेजवार या दीपक जोशी, ऐसे कई दिग्गज हैं, जिनकी परंपरागत सीटों पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए विधायक काबिज हो गए हैं।
बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि मौजूदा विधायक होने के कारण अधिकांश पूर्व मंत्रियों और पूर्व विधायकों को 2023 में टिकट नहीं मिल पाएगा। ऐसे में ये नेता पार्टी के लिए मुसीबत बन सकते हैं। सिंधिया समर्थकों के चलते अपनी पार्टी में पीछे धकेले गए इन नेताओं में कई ऐसे भी हैं, जिनका राजनीतिक भविष्य खतरे में दिखाई पड़ रहा है।

  1. गौरीशंकर बिसेन: मुझे नहीं तो बेटी को टिकट दो

    पिछले साल सितंबर में पूर्व मंत्री व विधायक गौरीशंकर बिसेन ने कहा था कि यदि पार्टी उनकी बेटी मौसम को टिकट देती है, तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनके इस बयान से साफ संकेत हैं कि पार्टी बालाघाट में उनके विकल्प पर दांव लगा सकती है। उन्हें शिवराज मंत्री मंडल में जगह भी नहीं मिली, जबकि वे 7 बार के विधायक हैं।

    दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कहा है कि बीजेपी की लड़ाई वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ है। ऐसे में बिसेन को आभास है कि अगले चुनाव में उनका पत्ता कट सकता है। हालांकि, पार्टी ने उन्हें पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाकर साधने की कोशिश की है। इसके बावजूद बिसेन अपनी बेटी को सार्वजनिक मंचों पर आगे रख रहे हैं। इसके साथ ही वे ऐसे बयान भी दे रहे हैं, जिससे साफ होता है कि प्रेशर पॉलीटिक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।

    हाल ही में उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि ओल्ड पेंशन स्कीम बेहतर है और इससे कर्मचारियों के परिवार का भला होगा, जबकि पार्टी इस मुद्दे पर वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं।

    1. डॉ. गौरीशंकर शेजवार: टिकट लिए अड़े हैं, ताकत दिखाते रहते हैं

      कभी प्रदेश सरकार में प्रभावी मंत्री रहे डॉ. गौरीशंकर शेजवार अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। सात बार के विधायक शेजवार ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बेटे मुदित को टिकट दिलाया, लेकिन मुदित कांग्रेस के डॉ. प्रभुराम चौधरी से हार गए थे।

      2020 में डॉ. चौधरी भाजपा में आए तो शेजवार के लिए एक तरह से चुनावी राजनीति के दरवाजे बंद हो गए। उपचुनाव के दौरान शेजवार ने अपनी ताकत से इस दरवाजे को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन यह दांव उल्टा पड़ गया। उन पर भितरघात के आरोप लगे। सांची उपचुनाव के अधिकृत प्रत्याशी प्रभुराम चौधरी के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में डॉ. शेजवार व उनके पुत्र मुदित को नोटिस दिया था। बहरहाल, अभी तक कोई एक्शन नहीं हुआ, लेकिन उन्हें सफाई जरूर देना पड़ी थी।

      शेजवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की छटपटाहट गाहे बगाहे सामने आ जाती है। पिछले साल 25 दिसंबर को उन्होंने समर्थकों के सामने एक कहानी के माध्यम से कहा था कि एक साल बाद राजा व उसका घोड़ा भी मरेगा। उनके इस बयान का वीडियो वायरल हुआ था।

      अपनी जमीनी पकड़ और समर्थकों के भरोसे वे इस बार भी सांची से दावेदारी कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी को पार्टी फिर मैदान में उतारती है? ऐसे में शेजवार के कदम पर सभी की निगाहें रहेंगी। साथ ही, पार्टी के सामने भी यह सवाल रहेगा कि उन्हें किस तरह शांत रखा जाए।

      1. अजय विश्नोई: बगावती तेवर, निशाने पर सरकार

      जबलपुर से विधायक अजय विश्नोई अपने बयानों से सुर्खियों में रहते हैं। पिछले करीब 2 साल से शिवराज सरकार उनके निशाने पर है। उनकी गिनती उन नेताओं में हो रही है, जो हाशिए पर हैं। पूर्व मंत्री जयंत मलैया के जन्मदिन पर अमृत महोत्सव कार्यक्रम की अगुवाई विश्नोई ने की थी। शराबबंदी के खिलाफ अभियान में उमा भारती को विश्नोई का खुलकर समर्थन मिला।

      विश्नोई को सीनियर होने के बावजूद मंत्री नहीं बनाए जाने की कसक है। शिवराज कैबिनेट विस्तार के बाद विश्नोई ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि महाकौशल के 13 भाजपा विधायकों में से एक को और विंध्य में 18 भाजपा विधायकों में से एक को राज्य मंत्री बनने का सौभाग्य मिला है। महाकौशल और विंध्य अब फड़फड़ा सकते हैं, उड़ नहीं सकते। महाकौशल और विंध्य को अब खुश रहना होगा… खुशामद करते रहना होगा।

      जानकारों का मानना है कि जब विश्नोई युवा मोर्चा के अध्यक्ष थे, तब शिवराज महामंत्री थे। वे जिस तरह से सरकार की सार्वजनिक तौर पर आलोचना कर रहे हैं, उससे लगता है कि उनका टिकट खतरे में पड़ सकता है। इसके बावजूद उनके बगावती तेवर कम नहीं हो रहे हैं। यह बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।

      1. जयंत मलैया: भितरघात के आरोप में नोटिस मिला, फिर भी तेवर नहीं बदले

      पूर्व मंत्री जयंत मलैया ने उम्र के 75वें पड़ाव को पूरा करने पर दिसंबर 2022 में अमृत महोत्सव का आयोजन किया था, जिसे बीजेपी के असंतुष्ट नेताओं के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा गया। दमोह सीट से 7 बार चुनाव जीतने वाले मलैया के बगावती तेवर उस समय सामने आए, जब उन्हें हराकर विधायक बने कांग्रेस के राहुल लोधी ने बीजेपी का दामन थामा।

      आरोप है कि उपचुनाव में मलैया और उनके पुत्र सिद्धार्थ ने राहुल के खिलाफ काम किया। राहुल ने हार के लिए मलैया और सिद्धार्थ को जिम्मेदार बताया था। पार्टी ने सिद्धार्थ को निष्कासित कर दिया। जयंत मलैया को नोटिस देकर एक मौका दिया था, लेकिन उनके तेवर में कोई बदलाव नहीं आया। उन्होंने अपनी ताकत दिखाने के लिए अमृत महोत्सव का आयोजन किया।

      इससे पहले, बेटा सिद्धार्थ नगरीय निकाय चुनाव में अघोषित पार्टी बनाकर अपने समर्थकों के साथ चुनाव लड़ चुका था। इस चुनाव में TSM (टीम सिद्धार्थ मलैया ) के 5 पार्षद जीते हैं। कुछ बहुत कम वोटों से हारे। जानकार कहते हैं कि मलैया को हाशिए पर लाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि अमृत महोत्सव कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय तक शामिल हुए। इस दौरान विजयवर्गीय ने मलैया से दोनों हाथ जोड़कर माफी मांगी।

      1. दीपक जोशी: नड्डा से मिलकर ‘पावर’ दिखाया, फिर भी नहीं मिला टिकट

      पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी पार्टी के उन पुराने नेताओं में शामिल हैं, जो सिंधिया समर्थकों के बीजेपी में आने के बाद से नाराज चल रहे हैं। जोशी को हाटपीपल्या में अपने लिए संभावनाएं कम होती दिख रही हैं। वे उपचुनाव के दौरान कई बार खुलकर हाटपीपल्या से अपने लिए टिकट की मांग भी कर चुके थे, लेकिन पार्टी आलाकमान ने कोई जवाब नहीं दिया। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा से मिलकर अपना पावर दिखाया, फिर भी उन्हें टिकट नहीं मिला।

      यहीं से जोशी का सरकार पर हमला शुरू हो गया। उनके बयानों से कई बार सरकार बैकफुट पर आती दिखी। उन्होंने 19 दिसंबर 2022 को प्रधानमंत्री आवास योजना में भ्रष्टाचार होने के मामले में सड़क पर आंदोलन की चेतावनी तक दे डाली। उन्होंने सरकार को घेरते हुए कहा था कि कुछ सालों से बागली भ्रष्टाचार का पर्याय बनता जा रहा है। कहीं न कहीं बेईमानी हो रही है। तब सरकार को दवाब में आना पड़ा। आनन-फानन में भ्रष्टाचार के दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

      जोशी अगले विधानसभा चुनाव में टिकट के लिए लगातार दबाव बना रहे हैं। दो महीने पहले उन्होंने अपने समर्थकों के साथ भोपाल पहुंचकर मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायकों के बीजेपी जॉइन करने के बाद से ही जोशी पार्टी नेतृत्व से लगातार नाराज चल रहे हैं। इन विधायकों में जोशी को हाटपीपल्या में हराने वाले मनोज चौधरी भी शामिल थे। 2018 के विधानसभा चुनावों में मनोज चौधरी ने जोशी को 13 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इससे पहले 2013 में जोशी इसी सीट से विधायक चुने गए थे।

      1. अनूप मिश्रा: चुनाव में ताल ठोंकने से ग्वालियर में बिगड़ेगा समीकरण

      पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं। वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में पार्टी की बैठकों में लगातार नजर आ रहे हैं। अनूप मिश्रा ने साफ शब्दों में इरादे एक साल पहले ही जता दिए थे। उन्होंने एक बयान में कहा था कि मैं चुनाव लडूंगा यह तो तय है। अब पार्टी को सोचना है कि वह कहां से लड़ाना चाहती है। उनके यह तेवर अब पार्टी नेतृत्व के लिए उलझन बढ़ा सकते हैं, क्योंकि अनूप अभी तक ग्वालियर पूर्व विधानसभा से चुनाव लड़ते आए हैं।

      सिंधिया और उनके समर्थकों का बीजेपी में शामिल होने से सबसे ज्यादा असर ग्वालियर-चंबल की राजनीति पर पड़ा है। मिश्रा की पहचान ब्राम्हण नेता के तौर पर है। नगर निगम चुनाव के दौरान उस समय बीजेपी में अंतर्कलह सामने आई थी, जब बीजेपी के संकल्प पत्र के विमोचन के दौरान मंच पर जगह नहीं मिलने पर अनूप मिश्रा नाराज हो गए थे। इसके बाद ब्राह्मण समाज बीजेपी के विरोध में उतर आया। उसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी महापौर का चुनाव हार गई।

      अनूप मिश्रा के चुनाव से पहले ही ताल ठोंकने पर ग्वालियर में आगामी विधानसभा चुनाव में समीकरण गड़बड़ाने वाले हैं, क्योंकि अनूप मिश्रा हमेशा से ग्वालियर पूर्व विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते हैं। उनके बाद इस सीट से सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल कांग्रेस से चुनाव जीते। जब सिंधिया ने प्रदेश सरकार गिराई तो मुन्नालाल ने भी इस्तीफा दिया। उपचुनाव में वह भाजपा से लड़े और चुनाव हार गए। अब अनूप मिश्रा के साथ उनकी भी इस सीट पर दावेदारी होगी। इस सीट के अलावा भितरवार से भी अनूप मिश्रा जोर अजमाइश कर सकते हैं।